जब भी बिहार का नाम लिया जाता है, तो अक्सर गरीबी, पलायन और पिछड़ेपन की छवि सामने आती है। लेकिन अब वक्त है उस सोच को बदलने का। जिस धरती को अब तक हम विकास से दूर मानते थे, उसी के गर्भ में ऐसा खजाना छिपा है जो पूरे देश की किस्मत बदल सकता है।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की हालिया रिपोर्ट ने सबको चौंका दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में देश का सबसे बड़ा सोने का ‘रिसोर्स’ मौजूद है — करीब 222.88 मिलियन टन। यह आंकड़ा न सिर्फ बिहार के लिए, बल्कि पूरे भारत के लिए एक नई उम्मीद की किरण है।
सोने के नक्शे पर बिहार सबसे ऊपर
- बिहार: 222.88 मिलियन टन
- राजस्थान: 125.91 मिलियन टन
- कर्नाटक: 103 मिलियन टन
हालांकि, यहां यह समझना जरूरी है कि ‘रिसोर्स’ और ‘रिजर्व’ में फर्क होता है। रिसोर्स का मतलब है कि जमीन के नीचे कितना सोना मौजूद है, जबकि रिजर्व वह हिस्सा है जिसे मौजूदा तकनीक और लागत के हिसाब से निकाला जा सकता है।
तकनीक की चुनौती, उम्मीद की राह
बिहार में मौजूद सोना इतनी गहराई में या कठिन चट्टानों में फंसा हो सकता है कि उसे निकालना आज की तकनीक से बेहद महंगा और मुश्किल है। यही वजह है कि कर्नाटक, जहां रिजर्व अधिक है, आज भी भारत की सबसे बड़ी गोल्ड प्रोड्यूसिंग स्टेट बना हुआ है।
लेकिन विज्ञान हर दिन तरक्की कर रहा है। नई खनन तकनीकों के आने से वह दिन दूर नहीं जब बिहार की धरती से यह खजाना निकाला जा सकेगा।
भारत की गोल्ड पॉलिसी को मिल सकता है नया मोड़
भारत दुनिया के सबसे बड़े गोल्ड खरीदारों में से एक है। 2025 की दूसरी तिमाही में देश का गोल्ड रिजर्व 880 टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। अगर बिहार का सोना व्यावसायिक रूप से निकाला जाने लगे, तो भारत को विदेशी सोने पर निर्भरता कम करनी पड़ेगी।
एक सपना जो हकीकत बन सकता है
बिहार आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां से उसका भविष्य पूरी तरह बदल सकता है। यह सोना सिर्फ धातु नहीं, बल्कि उस उम्मीद का प्रतीक है जो हर बिहारी युवा की आंखों में चमक ला सकती है।
बिहार अब सिर्फ इतिहास और संघर्ष की कहानी नहीं, बल्कि समृद्धि और संभावनाओं की नई गाथा लिखने जा रहा है।
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