अशोक चिह्न लगाने की क्या मजबूरी…धार्मिक भावनाएं या राष्ट्र का अपमान? उमर-महबूबा के बयान से गरमाया माहौल

श्रीनगर की प्रतिष्ठित हजरतबल दरगाह में हाल ही में एक नए गेस्ट हाउस की उद्घाटन पट्टिका पर लगाए गए अशोक चिह्न को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। कट्टरपंथी भीड़ ने इसे मजहब के खिलाफ बताते हुए पत्थर मारकर राष्ट्रीय प्रतीक को क्षतिग्रस्त कर दिया। इस घटना ने राजनीतिक और धार्मिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा कर दी हैं।

दरख़्शां अंद्राबी की तीखी प्रतिक्रिया

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि धार्मिक स्थल पर अशोक चिह्न लगाने की क्या मजबूरी थी। उन्होंने इसे एक गैरज़रूरी कदम बताया और कहा कि पहले यह सोचना चाहिए था कि क्या ऐसे प्रतीक की आवश्यकता है।

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वहीं विपक्षी नेता महबूबा मुफ्ती ने भी सुर मिलाते हुए कहा कि जब भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो प्रतिक्रिया स्वाभाविक होती है। उन्होंने तोड़फोड़ करने वालों को आतंकवादी कहे जाने का विरोध किया और कहा कि असली जिम्मेदारी उन लोगों की है जिन्होंने यह प्रतीक वहां लगाया।

कानूनी पहलू और कार्रवाई

वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दरख़्शां अंद्राबी ने इस घटना को राष्ट्र के प्रतीक पर हमला बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने आरोप लगाया कि यह हमला एक राजनीतिक पार्टी से जुड़े लोगों द्वारा किया गया है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कार्रवाई नहीं हुई तो वह भूख हड़ताल पर बैठेंगी।

पुलिस सूत्रों के अनुसार, उपद्रवियों की पहचान कर ली गई है और उनके खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी। राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करने पर छह महीने की सजा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। यह मामला अब सिर्फ धार्मिक भावनाओं का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान और राजनीतिक बयानबाज़ी का मुद्दा बन चुका है। प्रशासन पर अब दबाव है कि वह निष्पक्ष जांच कर दोषियों को सजा दिलाए और भविष्य में ऐसे विवादों से बचने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तय करे।

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